पुराने बागीचों में री-प्लांटेशन को सफल करने के लिए फैदर प्लांट की सबसे उपयुक्त

शिमला। पुराने बागीचों में री-प्लांटेशन को सफल करने के लिए फैदर प्लांट की सबसे उपयुक्त हैं। राज्य के बागवान इस समय पुराने बागीचों को लेकर परेशान हैं। वे नए पौधे लगाने में जूझ रहे हैं। हर साल गड्ढे किए जा रहे हैं और पौधे भी लगाए जा रहे हैं, लेकिन वे सफल नहीं हो पा रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में नब्बे फीसदी से अधिक बागीचे पुराने हो गए हैं। उन्हें नया करना बेहद जरूरी है। इसके लिए फैदर प्लांट उपयोगी साबित होते हैं। जिस पौधे की आयु दो से तीन साल होती है और जिसमें चार से लेकर दस शाखाएं निकली हों, उन्हें फैदर प्लांट कहा जाता है।
हिमाचल प्रदेश में कोटगढ़ सेब उत्पादन का मुखिया माना जाता है। जब वहां बागीचे पुराने हो गए तो प्रगतिशील बागवानों ने फैदर प्लांट के जरिए ही उन्हें नया जीवन दिया।
फैदर प्लांट कुल्लू में तैयार किए जाते हैं। यूं तो बागवान उन्हें अपने स्तर पर भी तैयार कर सकते हैं। इटली जैसे विश्व के अग्रणी सेब उत्पादक देशों में वहां फैदर प्लांट पर बागीचे तैयार किए जाते हैं। फैदर प्लांट केवल तीन साल के आयु के ही मान्य हैं। इससे कम आयु के पौधे सफल नहीं होते। भारत में कश्मीर फैदर प्लांट को अपना चुका है। वहां सारी पौध फैदर प्लांट पर तैयार होती है।
हिमाचल में बागवान अपने स्तर पर भी फैदर प्लांट तैयार कर सकते हैं। इसकी सफलता दर अधिक होती है। शिमला जिला में सेब के 35 लाख के करीब पौधे हैं। इनमें से पचास फीसदी पुराने हो गए हैं। इन्हें बदलने की जरूरत है। और इन्हें फैदर प्लांट लगाकर बदलना ही समझदारी है।
शिमला जिला में एक साल का पौधा (रॉयल) का खरीदना हो तो उसकी कीमत अस्सी से सौ रुपए है। यदि स्पर का पौधा इसी आयु का खरीदना हो तो उसके लिए डेढ़ सौ से तीन सौ रुपए खर्च करने पड़ते हैं। कुल्लू में एक साल के रॉयल के पौधे की कीमत 30 से 45 रुपए है। स्पर की कीमत वहां चालीस से पचास रुपए है। वहीं दो साल का फैदर प्लांट अस्सी से सौ रुपए में और तीन साल का फैदर प्लांट 120 से 180 रुपए का मिल जाता है।
फैदर प्लांट के सफल होने पर तीन साल की मेहनत बचती है। तीन साल के इस प्लांट को लगाने से री-प्लांटेशन सफल हो सकती है। कोटगढ़ के बागवानों ने इसे संभव कर दिखाया है।


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