मई महीने में माइट पर नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी में डेढ़ से दो लीटर समर ऑयल
रस्टिंग की समस्या से परेशान बागवानों को पैटल फॉल के दौरान 200 लीटर पानी में 250 ग्राम बोरिक एसिड का छिडक़ाल करना जरूरी है। इससे रस्टिंग पर काबू पाया जा सकता है। फ्रूट सैटिंग पर सबसे पहली स्प्रे कैल्शियम नाइट्रट की करें। कैल्शियम नाइट्रेट फ्रूट की सैल डिविजन में मदद करता है। यहां ध्यान रखा जाए कि इसके साथ बोरोन की स्प्रे कतई न करें। यहां प्रसंगवश यह भी जिक्र जरूरी है कि किसी भी खाद के साथ मिलाकर बोरोन की स्प्रे न करें। इससे फसल को नुकसान हो सकता है। कारण यह है कि केमिकल फर्टीलाइजर के साथ बोरोन की कंपेटिबिलिटी नहीं है। कैल्शियम नाइट्रेट की स्प्रे 45 दिन के भीतर फिर दोहराएं। इससे फ्रूट की सैल डिविजन, फ्रूट लोंगेशन व साइज के बढऩे में काफी मदद मिलती है।
फ्रूट सैटिंग के बाद कैल्शियम नाइट्रेट के साथ सौ ग्राम मैगनीशियम मिलाने से प्रकाश संश्लेषण अच्छा होता है। क्योंकि मैगनीशियम पत्तियों में क्लोरोफिल को बढ़ाता है। बागीचे में पाउड्रीमिलड्री की परेशानी को दूर करने के लिए माइक्रोबुटानिल की स्प्रे की जानी चाहिए। मई महीने में माइट पर नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी में डेढ़ से दो लीटर समर ऑयल की स्प्रे जरूर करें। इससे माइट का खतरा टल जाता है। इस स्प्रे से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया तेज होती है।
यूरिया की जानकारी जरूरी
बागीचों में मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए विशेषज्ञों ने यूरिया के इस्तेमाल का सुझाव दिया है। फल देने वाले पौधे में एक किलो यूरिया डाला जा सकता है। मार्च माह में इसका प्रयोग किया जा सकता है। एक किलो यूरिया का प्रयोग बागीचे की स्थिति के अनुसार एक बार में ही या फिर किश्तों में भी किया जा सकता है। इसके साथ एक किलो चूने का प्रयोग भी करना चाहिए। यूरिया में 46 फीसदी नाइट्रोजन होता है। यूरिया मिट्टी की नेचर को एसिडिक बनाता था, इस कारण बागवानों ने इसका प्रयोग बंद किया था, परंतु वैज्ञानिक यह सुझाते हैं कि चूने के प्रयोग से एसिडिक नेचर खत्म होती है और पौधे को नाइट्रोजन का पूरा पोषण मिलता है।
यदि मिट्टी परीक्षण में भूमि का एसिडिक 5 से 6 मानक का है तो यूरिया के साथ चूना लगाना बेहद जरूरी है। अगर पीएच 6.5 से लेकर 7 से अधिक है तो यूरिया के साथ चूने के प्रयोग की जरूरत नहीं है। यूरिया दाम में सस्ता है। इसे बागवान बेहिचक प्रयोग कर सकते हैं। एक किलो यूरिया के जरिए एक पौधे की नाइट्रोजन की 700 ग्राम की मात्रा पूरी हो जाती है।
पोषक तत्वों/खादों को डालने का कार्य
मार्च महीने में फूल आने से दो या तीन सप्ताह पहले नाइट्रोजन की आधी मात्रा पौधों के तौलिए में डालें। इसी तरह अप्रैल माह या फ्रूट सेट होने के बाद बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा भी डाल दें। यदि किसी कारणवश नाइट्रोजन (कैन खाद) भूमि में न डाल सकें तो 200 लीटर पानी में एक किलोग्राम घोल कर छिडक़ाव करें। बोरोन की कमी को दूर करने के लिए 200 ग्राम बोरीक एसिड 200 लीटर पानी में घोल कर 15 दिन में दो छिडक़ाव जून माह में करें। इसी तरह मैग्नीज की कमी पर मैग्नीज सल्फेट 800 ग्राम 200 लीटर पानी में घोल कर 15 दिन के भीतर दो छिडक़ाव करें। कॉपर (तांबा) की कमी को दूर करने के लिए कॉपर सल्फेट 600 ग्राम 200 लीटर पानी में घोल कर 15 दिन के अंदर जून-जुलाई में दो छिडक़ाव करें। कैल्शियम की कमी दूर करने के लिए एक किलोग्राम कैल्शियम क्लोराईड 200 लीटर पानी में घोल कर तुड़ाई से 45 दिन और 30 दिन पहले दो छिडक़ाव करें। यह छिडक़ाव फल भंडारण के लिए आवश्यक है। यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि जिंक सल्फेट, कॉपर सल्फेट और मैग्नीज सल्फेट के साथ आधी मात्रा में अनबुझा चूना अवश्य मिलाएं नहीं तो पत्ते झुलस सकते है और फल पर भी व्याधियां आ सकती हैं।
अब पत्तों पर पैनी नजर रखने से होगा माईट का बचाव
सेब का माईट मकड़ा है जिसकी दो प्रजातियां युरोपियन रैड माईट तथा टू-स्पॉटिड माईट माईट सेब की फसल को नुक्सान पहुचातें हैं। यूरोपियन रैड माईट लाल रंग और छोटा होता है है और लैंस की सहायता से सुगमता से देखा जा सकता है। वयस्क मादा की लम्बाई 0.4 मि.मी. लम्बी होती है, जिसकी पीठ उभर हुई तथा उस पर श्वेत गोल चिन्ह होते है सर्दियों में दिए जाने वाले अण्डे गहरे लाल रंग के तथा गर्मियों में अण्डों का रंग हल्का लाल होता है। रैड माईट के लारवा अपने सुईनुमा मुंह से पत्तियों में कई बार छेद करते हैं तथा पौधे का क्लोरोफिल चाट जाते हैं। माईट बागीच में फसल को बर्बाद करके दूसरी साल होने वालीफल को भी नुक्सान पहुचातें हैं। माइट को लेकर बागवान कुछ लापरवाह रहते हैं ऐसा नहीं होना चाहिए। माइट का स्प्रे पत्तों की सही जांच के बाद जून के प्रथम सप्ताह की जानी चाहिए जबकि बागवान तब स्प्रे करते है जब माइट पत्तों को नुक्सान करके फसल का नुक्सान कर चुका होता है ।
माईट को कैसे नियंत्रित करें
रैड माईट का नियन्त्रण का सबसे कारगर तरीका हॉर्टिक्ल्चरल मिनरल ऑयलकी स्प्रे है। बागीच में माईट की संख्या दो से तीन हो तो दो लीटर ऑयल 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें । ,पर उसके लिए पत्तों कर सही जांच करना आवश्यक है । ऑयल में किसी भी तरह के कीटनाशक को नहीं मिलाया जाना चाहिए। दूसरा उपाय अनुकूल मौसम में माईटनाशक रसायनों में सीपरोमैसीफीन 22.7 फीसदी एससी, 60 एमएल 200 लीटर पानी में शुरू में स्प्रे करने से होता है। यह दवाई शुरू में करे बागीच में माईट की संख्या अधिक होने पर यह कारगार नहीं है,ऐस में फन्जाक्वीन 10 ईसी, 50 एमएल,हैकसीथाईजोक्स, 200 एमएल और प्रापाजाइट, 200 एमएल का प्रयोग 200 लीटर पानी में स्प्रे कर माईट की रोकथाम कर सकतें है। बागवान यह ध्यान रखें की सामान्य कीटनाशकों का प्रयोग माईट नियन्त्रण में कारगर नहीं है।
माईट को कैसे नियंत्रित करें
रैड माईट का नियन्त्रण का सबसे कारगर तरीका हॉर्टिक्ल्चरल मिनरल ऑयलकी स्प्रे है। बागीच में माईट की संख्या दो से तीन हो तो दो लीटर ऑयल 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें । ,पर उसके लिए पत्तों कर सही जांच करना आवश्यक है । ऑयल में किसी भी तरह के कीटनाशक को नहीं मिलाया जाना चाहिए। दूसरा उपाय अनुकूल मौसम में माईटनाशक रसायनों में सीपरोमैसीफीन 22.7 फीसदी एससी, 60 एमएल 200 लीटर पानी में शुरू में स्प्रे करने से होता है। यह दवाई शुरू में करे बागीच में माईट की संख्या अधिक होने पर यह कारगार नहीं है,ऐस में फन्जाक्वीन 10 ईसी, 50 एमएल,हैकसीथाईजोक्स, 200 एमएल और प्रापाजाइट, 200 एमएल का प्रयोग 200 लीटर पानी में स्प्रे कर माईट की रोकथाम कर सकतें है। बागवान यह ध्यान रखें की सामान्य कीटनाशकों का प्रयोग माईट नियन्त्रण में कारगर नहीं है।
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