पोलीनेशन सही तो फल शानदार





 छोटे-छोटे प्राणी जैसे मधुमक्खियां, तितलियां आदि बड़े-बड़े काम करती हैं बाग को संवारने के लिए। यह सब पोलीनेशन के तहत आता है। यदि पोलीनेशन सही हो तो फल की क्वालिटी को शानदार होने से कोई नहीं रोक सकता। बागवानों को सही पोलीनेशन प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। साथ ही पोलीनाइजर किस्मों का भी बाखूबी पता होना चाहिए। आखिर तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक का सेब साम्राज्य जिन पहलुओं पर टिका है, उनमें पोलीनेशन का अहम रोल है।
हिमाचल में पॉलीनाइजर किस्मों की कमी एक ऐसा कारण है, जिससे बागवानी प्रभावित होती है। राज्य में 70 प्रतिशत बागीचों में रेड गोल्ड और गोल्डन जैसी किस्में परागण कर्ता किस्में हैं। यदि शानदार उत्पादन लेना हो तो बागीचे में कम से कम चार से पांच पॉलीनाइजर होने चाहिए। इनमें सेल्फ पोलीनाइजर किस्मों में गेल गाला, स्कारलेट गाला, मिशल गाला, ब्रुकफील्ड गाला, रेडलम गाला, रॉयल गाला जैसी किस्में शामिल हैं। यदि इनकी संख्या बागीचे में अधिक हो तो ये पोलीनेशन का काम भी करती हैं। इनकी मौजूदगी से बागीचे में पोलीनेशन सही होता है। ये नियमित क्रॉप बियरर भी हैं। इस तरह इनका दोहरा लाभ है। दूसरी तरफ गोल्डन व रेड गोल्ड किस्मों को मार्केट में सही दाम नहीं मिलता। गाला किस्मों की इस समय मार्केट में अच्छी मांग है। ऐसे में बागवानों को इनसे दोहरा लाभ कमाना चाहिए। इसके अलावा परागण किस्मों में जिंजर गोल्ड, पिंक लेडी, विंटर बनाना, समर क्वीन, टाइडमैन व ग्रेनी स्मिथ जैसी किस्में शामिल हैं।
हिमाचल प्रदेश में सही पोलीनेशन न होने से उत्पादन प्रभावित होता है। इस समय प्रदेश में एक हैक्टेयर क्षेत्र में सेब का औसतन उत्पादन 5 टन है। वहीं कश्मीर में प्रति हैक्टेयर पैदावार 11 टन के करीब की है। इस अंतर के पीछे भी काफी हद तक कम पोलीनेशन जिम्मेदार है। कश्मीर में तकनीक हिमाचल से पीछे है, लेकिन वहां बागीचों में क्रॉस पोलीनेशन के कारण उत्पादन अधिक है। हिमाचल प्रदेश में डिलीशयस किस्मों की अधिकता है। यहां ये किस्में 85 प्रतिशत हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर में 30 और उत्तराखंड में 35 फीसदी हैं।
अब पोलीनेशन के दूसरे पहलू पर आते हैं। छोटे-छोटे कीट जैसे मधुमक्खी व तितली परागण में महत्वपूर्ण हैं। हिमाचल में परागण के लिए मधुमक्खियों की कमी है। बागवानों को बागीचों में मधुमक्खियों की कमी को पूरा करने के लिए इनके बॉक्स लगाने चाहिए। बॉक्स एक ही स्थान पर लगाने चाहिए। अगर इन्हें बदलना हो तो पास-पास न बदलें। परागण के लिए इनकी भूमिका को पहचानना जरूरी है। मधुमक्खियां पानी के लिए काफी दूर जाती है। पानी उन्हें मौके पर ही उपलब्ध हो, इसका इंतजाम करना चाहिए। ऐसा करने से पोलीनेशन सही होता है। एक बात का और ध्यान रखना चाहिए। वो ये कि बागीचे के आसपास सरसों नहीं होनी चाहिए। ऐसे में मक्खी सरसों के फूल के प्रति आकर्षित होती है। इससे पोलीनेशन प्रभावित होता है। एक गलतफहमी बागवानों को मीठे के छिडक़ाव को लेकर है। बागीचे में इसकी जरूरत नहीं है। मधुमक्खियां पौधों के आसपास रहें, इसकी तरफ ही अधिक ध्यान रखना चाहिए।
इंटरनेशनल मार्केट में जिस किस्म की भारी डिमांड है, उसका नाम ग्रेनी स्मिथ है। ग्रेनी स्मिथ की पोलीनेशन में अहम भूमिका है। इसका फूल पौधे में अधिक समय तक रहता है। इससे पोलीनेशन की प्रक्रिया सहज हो जाती है। यदि बागवान गोल्डन किस्म की जगह इसे लगाएं तो अच्छी आमदनी होगी।
पोलीनेशन में इसके अलावा वायु, पानी और कीटों का रोल भी है। सेब के अलावा नाशपाती, चैरी, फूलगोभी, बंदगोभी, सरसों, सूरजमुखी और नींबू प्रजातीय फसलों में भी पॉलीनेशन कीटों के जरिए होता है। परागण के लिए फूलों का एक समय पर खिलना, कीट की मौजूदगी और अनुकूल वातावरण जरूरी है। यदि इनमें से किसी एक की कमी हो तो पैदावार पर असर पड़ता है। परागण प्रक्रिया में सहायक कीटों में डाईप्टेरा, हाईमिनोंप्टेरा, लेपीडोप्टेरा, कोलियोप्टेरा और थाईसेनाप्टेरा शामिल हैं। मधुमक्खियों से होने वाले परागण से बादाम और सेब के उत्पादन में 20 से 15 और चैरी में 15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की जा सकती है। कुल्लू घाटी मेंं देसी मधुमक्खी एपिस सिराना का महत्वपूर्ण योगदान है। विदेशी मधुमक्खी एपिस मेलीफेरा भी बेहतर परागण कीट है। यह मधुमक्खी कम फूलों से भी गुजारा कर सकती और कम तापमान में भी कार्य करती है।

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