को-रॉट के लिए समय पर करे स्प्रे

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हिमाचल में इसकी पैदावार 6 से 9 टन प्रति हैक्टेयर है, विश्व के अग्रणी सेब उत्पादक देश न्यूलीलैंड, चीन, जापान, अमेरीका, और आस्ट्रेलिया आदि में यह 30-40 टन प्रति हैक्टेयर के करीब है। कम पैदावार के पीछे विभिन्न प्रकार के रोग और प्रूनिंग की पुरानी तकनीक भी कारण रहा है। वहीं कोर रॉट रोग भी सेब की पक्की फसल के आंकड़े को नीचे गिराने का काम करता है। ऐसा रोग है जून से लेकर फल तुड़ान के बीच भारी ड्रापिंग होती है। रोग के प्रभाव से हानि का यह प्रतिशत 5 से 25 के बीच रहता है, इससे बागवानों को भारी आर्थिक क्षति होती है। कोर रॉट से प्रभावित फल स्टोर के समय सड़ जाते हैं। कोर रॉट के फफंूद हमेशा सेब के रोगग्रस्त पत्तों, फलों और टहनियों पर जीवित रहते है। फफंूद मार्च-अप्रैल माह मे फूल से पंखुडीपात की अवस्था में विभिन्न भागों पर पनपकर इन्फेकशन पैदा करता है। वर्ष समय अधिक हो सकती क्योंकि फ्लाविरंग पर बारिश और अधिक नमी होने से कोर रॉट फैलने की संभावना ज्यादा रही है। इसलिए बागवान इस साल इस बीमारी को लेकर ज्यादा सजक रहें। जहां बागवान को-रॉट या दाने के बीज सडऩे की समस्या से जूझ रहे हों, वहां पिंक और फूल झडऩे के बाद 200 लीटर पानी में 600 ग्राम डायथिन प्लस, 100 ग्राम बैवेस्टियन या 35 मिलीलीटर स्कोर के मिश्रण की स्प्रे कर इस परेशानी को दूर कर सकते हैं। के समय अगर मौसम नमी वाले रहे तो सेब में को-रॉट की संभावना अधिक रहता है। जो सेब के बागीच जंगल के साथ लगते है वहीं नीम के कारण यह समस्या अधिक हो सकती है। फ्लावरिंग के समय अधिक बारिश और नमी कर वजह से दाने का बीज के फ्रंगस की चपेट में आने फल समय से पहले मैच्यूर होने पहले गिर जाता है। दाने गिरने का कारण को-रॉट है जिस की वजह से बीज सड़ जाता है और टहनी पर लगा फल गिर जाता है। ध्यान रहे लोअर बेल्ट जैसी ही फल में क्लर की स्प्रे करेंगे । वैसे ही को-रॉट चपेट में आए दाने गिरने शुरू हो जाएंगे। पिंक बड स्टेज पर 200 लीटर पानी में 600 ग्राम डायथिन प्लस, 100 ग्राम बैवेस्टियन या 35 मिलीलीटर स्कोर के मिश्रण की स्प्रे कर इस परेशानी को दूर कर सकते हैं। बागवान 30 फीसदी फ्लावरिंग में 50 एम एल स्कोर 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे कर सकतें है। इसें बाद फ्रूट सैटिँग के बाद भी यही स्प्रे कर सेते हैं।

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