शिमला। लाल-लाल सुंदर सेब तभी चखने को मिलते हैं, जब पौधों के लिए चिलिंग आवर्स पूरे हों। सेब के लिए चिलिंग आवर्स उतने ही जरूरी हैं, जितने शरीर के लिए प्राण। हिमाचल में पहले दिसंबर और फिर नए साल में बर्फबारी से चिलिंग आवर्स पूरे होने के आसार हैं। सेब सीजन को सफल बनाने के लिए दिसंबर, जनवरी, फरवरी व मार्च इन चार महीनों में 1200 चिलिंग आवर्स पूरे होने जरूरी हैं। जब चिलिंग आवर्स पूरे हो जाते हैं तो सेब की फ्लावरिंग बेहतर होगी और फिर फल की क्वालिटी भी शानदार। यदि चिलिंग आवर्स पूरे न हों तो फ्लावरिंग किसी पौधे में कम होगी किसी में ज्यादा। इससे फ्रूट सेटिंग प्रभावित होती है और सेब भी नहीं लगता। हिमाचल में चार लाख बागवान परिवार हैं। यहां हर साल चार से पांच करोड़ पेटी सेब होता है। एक सेब सीजन में तीन हजार करोड़ से अधिक का कारोबार होता है।
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क्या है चिलिंग आवर्स
सेब के पौधे में फल लगने के लिए सात डिग्री सेल्सियस से कम तापमान बेहद जरूरी है। सेब के पौधे दिसंबर माह में सुप्तावस्था में होते हैं। उन्हें सुप्तावस्था से बाहर आने के लिए सात डिग्री सेल्सियस का तापमान औसतन 1200 घंटे तक चाहिए होता है। इन्हीं 1200 घंटों को चिलिंग आवर्स कहते हैं।
बागवानी विशेषज्ञ डॉ, एमएस मनकोटिया के अनुसार जब पौधों के लिए चिलिंग आवर्स पूरे हो जाते हैं तो उसकी सुप्तावस्था खत्म हो जाती है। सुप्तावस्था के समय पौधे में मौजूद पोषक तत्व जड़ों की तरफ चले जाते हैं। चिलिंग आवर्स पूरे होने पर पौधे की सुप्तावस्था टूटती है और पोषक तत्व फिर से सारे पौधे में एकसमान होकर फैल जाते हैं। यदि चिलिंग आवर्स पूरे न हों तो पौधे के पोषक तत्व एकसमान नहीं फैलते। इससे पौधों में फूल ढंग से नहीं आते और फल की सेटिंग भी अच्छी नहीं होती।
डॉ. मनकोटिया के अनुसार इस बार दिसंबर महीने में भी बर्फबारी हुई है और जनवरी में भी। इससे चिलिंग आवर्स पूरे होने के भरपूर आसार हैं। कोटखाई के प्रगतिशील बागवान प्रकाश चौहान के मुताबिक प्रकृति बागवानों पर मेहरबान है। चिलिंग आवर्स पूरे होने से सेब की बंपर पैदावार होगी। उल्लेखनीय है कि अकेले शिमला जिला में ढाई करोड़ पेटी सेब पैदा होता है। ऐसे में चिलिंग आवर्स पूरे होने से बागवानों के चेहरे खिले हुए हैं।