री-प्लांटेशन :- अक्तूबर माह में गड्ढे तैयार

विदेशों में री-प्लांटेशन से पहले जमीन को उपचारित करने के तिए कइ्र्र प्रकार की घास का भी इस्तेमाल होता है। इनमें से कुछ किस्मों की घास अब हिमाचल में भी कई बागीचों में उपलब्ध है। इनमें टॉल फेसीक्यू,एनवलरे,परेनेवियररे और सोडान-79 आदि शामिल हैं। टॉल फेसीक्यू बागीचों में कई जगहों पर उपलब्ध है। इस तरह की घास की जड़ें न केवल मिटटी में पोषक तत्वों को उपलब्ध करवाती हैं,बल्कि कइ्र्र प्रकार के हानिकारक जीवाणुओं को भी नष्ट करती हैं। री-प्लांटेशन में आ रही दिक्कतों को गेहूं और जौ की फसल को पुराने पौधें की जगह उगाकर भी कम किया जा सकता है।वैेसे पुराने पौधों की जगह नई प्लांटेशन से पहले मिटटी परीक्षण बहुत अहम है। इसके अलावा गड्ढों को खुला छोड़ धूप और आग से भी उपचारित किया सकता है। कुछ खास तरह के रूट स्टॉक भी री-प्लांटेशन की समसया के निदान में सहायक हैं। ये रूट स्टॉक पुराने पौधे की जगह पर आसानी से बढ़ते हैं। पुनर्रोपण समस्या प्रतिरोधी रूट-स्टॉक्स जैसे एम-793,एम-27,ण्म-12,जी-65,सी जी-6210,जी30, मैलस बकाटा,मैलस जैन्थोकारपा,मैलस स्पैक्टोबिलिस व मैलस मैनडरूहसका पर पोधे तैयार करके पुन:रोपण करने से समस्या के प्रभाव से बचा जा सकता है।यदि संभव हो तो पुरानी जगह से हटकर ही गड्ढा बनाएं। अक्तूबर माह में भी गड्ढे तैयार किए जा सकते हैं,जोकि 5 फुट चौड़े और 3 फुट गहरे हों। इन्हें लंबे समय पर खुला छोड़ा जाना चाहिए।
दिसंबर माह में गड्ढों को भरने से पहले 1:9 में फोर्मलिन के घोल से इनका उपचार किया जाना जरूरी है।इसके अलावा सेब के बागीचों के स्थान पर चैरी,परीसमेन और प्लम इतयादि पौधों के रोपण से पुनर्रोपण समस्या से बचा जा सकता है।ऐसा करने से फल विविधता भी बनी रहती है। बागवान गडढों को फोर्मलिन से उपचारित करें। गडढे के आसपास पुराने पौधें के ठंूूठ न रहने दें। गडढे में गली-सड़ी खाद,मिटटी और 1 किलो सुपर फॉस्फेट खाद मिलाकर उसे भूमि की सतह से दो फुट ऊंचा करें। पूरी तरह से तैयार और उपचारित गडढे को बिना छुए तीन सप्ताह तक रहने दें और फिर सेब का पौधा लगाएं। इसके अलावा गर्मी के दौरान पुराने गडढों की मिटटी को एक फुट ऊंची ढेरी में लगभग दो सप्ताह के लिए पोलीथीन से ढक कर रखें। ऐसा करने पर धूप से मिटटी का तापमान बढ़ेगा और इसमें मौजूद विषाणु और कीट इत्यादि नष्ट हो जाएंगे।

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