सेब को पछाड़ 2017 रहा ब्लैक एंबर प्लम के नाम


इस साल मुंबई बाजार मैं 550 रुपये बिका साढे तीन किलो का डिब्बा ……
जापान की ब्लैक अंबर प्रजाति और इटली के स्टैनले प्रून प्लम की कीमत भारतीय बाजार में 100 रुपए प्रति किलो से 150 रुपए प्रति किलो है। इस साल मुंबई बाजार मैं 550 रुपये बिका साढे तीन किलो का डिब्बा। इस ऊंची कीमत का कारण यह है कि अभी भारत में प्लम की खास प्रोडक्शन नहीं होना है। वर्ष 2006 में हिमाचल प्रदेश के बागवानी विभाग ने जापान व इटली से इन किस्मों को मंगवाया है। यहां के बागीचों में इसका पहला सैंपल आ चुका है। इनकी शैल्फ लाइफ बेहतर है और मार्केट में कीमत भी ठीक मिलती है। हिमाचल प्रदेश में प्लम की पैदावार का स्कोप बहुत है। लोअर बैल्ट में प्लम सेब के एक वैकल्पिक फल के रूप में उभरा है। प्लम की पैदावार गर्म घाटियों के अलावा मध्यम ऊंचाई वाले इलाकों में सफलता से की जा सकती है।प्लम प्रदेश में इस समय प्लम की चार पुरानी व सात नई किस्मों को उगाया जा रहा है। इनमें रेड ब्यूट, सैंटा रोजा, फ्रंटियर व मैरीपोजा शामिल हैं। इसके अलावा ब्लैक अंबर व अंजेलानों जैसी विदेशी किस्मों को भी उगाया जा रहा है। रेड ब्यूट किस्म के प्लम का फल मध्यम आकार के ग्लोब की तरह लाल होता है। इसकी त्वचा चमकीली व गूदा लाल होता है। यह जल्दी पकने के कारण मार्केट में सबसे पहले आता है। सैंटारोजा किस्म बैंगनी रंग की होती है। इसमें गुलाब जैसी सुगंध होती है। यह फल जून के दूसरे या तीसरे सप्ताह में पक जाता है। फ्रंटियर किस्म सैंटारोजा से भारी और आकार में बड़ी होती है। यह लेट वैरायटी है, जिसकी शैल्फ लाइफ बेहतर है। यह जून के अंतिम सप्ताह में मार्केट में आता है। वहीं, मैरीपोजा किस्म के फल आकार में फ्रंटियर से बड़े होते हैं। इनका रंग हल्का हरा होता है। यह जुलाई के तीसरे हफ्ते में पकते हैं। इसके लिए सैंटारोजा अच्छी परागण किस्म हैं। मेनार्ड प्लम के लिए जापानी प्लम की किस्में जैसे सैंटारोजा, मैरीपोजा को परागणकर्ता के तौर पर प्रयोग करने से अच्छी पैदावार हासिल की जा सकती है। परागणकर्ता के रूप में सैंटारोजा उपयुक्त है। परागणकर्ता के तौर पर बागीचे में प्लम के लिए एक से अधिक किस्म लगानी चाहिए। प्लम की पैदावार के लिए प्रदेश के बागावनों को उन प्रजातियों की तरफ ध्यान देना चाहिए, जिनकी शैल्फ लाइफ अच्छी हो। चूंकि इनकी मांग मुंबई व कोलकाता जैसे महानगरों में अधिक है और पैदावार को वहां की मंडियों तक पहुंचने में समय लगता है, लिहाजा अधिक शैल्फ लाइफ वाली किस्में ही कामयाब हैं। इस समय प्लम कुल्लू, मंडी, शिमला में पैदा किया जा रहा है। जिन बागवानों के सेब के बागीचे पांच हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित हैं, वहां प्लम लगाए जाने से आने वाले समय में सेब की री-प्लांटेशन में मदद मिलती है। प्लम का पौधा तीन साल के बाद पैदावार देना शुरू कर देता है। इस अर्से में सेब की री-प्लांटेशन के लिए मिट्टी में पोषक तत्व फिर से

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