जानिए सघन बागवानी
समय के इस दौर में सघन बागवानी का कंसेप्ट मान्यता हासिल कर चुका है। इटली, अमेरिका, न्यूजीलैंड व अन्य अग्रणी सेब उत्पादक देश सघन बागवानी कर रहे हैं। हिमाचल के लिए भी सघन बागवानी समय की जरूरत है। यूं तो सघन बागवानी सिडलिंग पर भी होती है, लेकिन विश्व के सभी प्रमुख सेब उत्पादक देश एम-9 रूट स्टॉक पर सघन बागवानी कर रहे हैं। कुछ देश तो इससे भी आगे बढक़र रूट स्टॉक की जेनेवा सीरिज पर काम कर रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में जमीन की उपलब्धता काफी कम है। जमीन की सीमित उपलब्धता को देखते हुए यहां सघन बागवानी किया जाना जरूरी है। इटली में भी बागवानी के लिए जमीन की उपलब्धता अपेक्षाकृत कम है। वहां भी इसी पर काम हो रहा है।
एक एकड़ क्षेत्र में यदि सौ या उससे कम पौधे सेब की रॉयल किस्म के लगे हों, तो बागीचे को ‘कम सघन’ की श्रेणी में रखा जाता है। इस समय हिमाचल में पौधों की यही रेशो है। इसी तरह यदि एक एकड़ जमीन पर सौ से दो सौ पौधे सेब के लगे हों, तो यह ‘मध्य सघन’श्रेणी में आते हैं। इसी प्रकार यदि एक एकड़ में दो से पांच सौ पौधे लगे हों तो यह अधिक सघन श्रेणी में आएगा।
हिमाचल प्रदेश में जिन बागवानों ने समय की नब्ज पकड़ते हुए चार से छह साल पहले सघन बागवानी में कदम रखा, वे अब अच्छे परिणाम हासिल कर रहे हैं। इस श्रेणी में हरिचंद रोछ, डॉ. विजय सिंह स्टोक्स आदि प्रगतिशील बागवान शामिल हैं।
हिमाचल प्रदेश में जमीन की उपलब्धता काफी कम है। जमीन की सीमित उपलब्धता को देखते हुए यहां सघन बागवानी किया जाना जरूरी है। इटली में भी बागवानी के लिए जमीन की उपलब्धता अपेक्षाकृत कम है। वहां भी इसी पर काम हो रहा है।
एक एकड़ क्षेत्र में यदि सौ या उससे कम पौधे सेब की रॉयल किस्म के लगे हों, तो बागीचे को ‘कम सघन’ की श्रेणी में रखा जाता है। इस समय हिमाचल में पौधों की यही रेशो है। इसी तरह यदि एक एकड़ जमीन पर सौ से दो सौ पौधे सेब के लगे हों, तो यह ‘मध्य सघन’श्रेणी में आते हैं। इसी प्रकार यदि एक एकड़ में दो से पांच सौ पौधे लगे हों तो यह अधिक सघन श्रेणी में आएगा।
हिमाचल प्रदेश में जिन बागवानों ने समय की नब्ज पकड़ते हुए चार से छह साल पहले सघन बागवानी में कदम रखा, वे अब अच्छे परिणाम हासिल कर रहे हैं। इस श्रेणी में हरिचंद रोछ, डॉ. विजय सिंह स्टोक्स आदि प्रगतिशील बागवान शामिल हैं।