हिमाचल में विदेशी किस्म



विगत एक दशक से सेब की विदेशी किस्में हिमाचल के बागवानों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई हैं। बागवान इन किस्मों की ओर आकर्षित हुए हैं। शिमला, मंडी, कुल्लू, चंबा, किन्नौर आदि जिलों में बागवान सेब की विदेशी किस्मों को उगा रहे हैं। कई जगह तो इन किस्मों ने परंपरागत रॉयल किस्मों वाले बागीचों को पूरी तरह से रिप्लेस कर दिया है। यहां आगे के पन्नों पर हिमाचल में सेब की अमेरिका, इटली, फ्रांस, चीन, न्यूजीलैंड आदि देशों की किस्मों पर एक अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है। पूरे प्रदेश में सेब की करीब पच्चीस विदेशी किस्मों का तुलनात्मक अध्ययन उनकी खूबियों, खामियों व स्थान विशेष में उनकी उपयोगिता की कसौटी पर यहां दिया जा रहा है।
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हिमाचल प्रदेश में आज से दस साल पहले यानी वर्ष 2004 में लाहौल स्पीति के ताबो में अमेरिकी किस्म के सेब का पहला सरकारी बाग स्थापित किया गया। यह बागीचा हार्टीक्लचर यूनिवर्सिटी नौणी ने लगाया
था। दो साल बाद हिमाचल के बागवानी विभाग ने प्रयोग के तौर पर किन्नौर के भोगटू इलाके में सेब की अमेरिकी स्पर किस्मों का बागीचा लगाया। इसी कड़ी में वर्ष 2007 में बागवानी विभाग ने अमेरिका से 25 हजार सेब के पौधे मंगवाकर बागवानों में वितरित किए। इस अरसे में बागवानों और वैज्ञानिकों को यह बाखूबी पता चल गया कि सेब की किस विदेशी किस्म की क्या खूबी और क्या खामी है तथा यह भी सामने आया कि हिमाचल के लिए कौन सी किस्में मुफीद हैं।
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वर्ष 2012 में हिमाचल सरकार के बागवानी विभाग ने फ्रांसीसी किस्मों सुपर चीफ, गाला व स्कारलेट स्पर मंगवा कर तय शुल्क पर बागवानों को बांटे। सेब की विदेशी किस्मों से परिचय हासिल करने के बाद प्रदेश के कुछ प्रगतिशील बागवानों ने अपने स्तर पर ही विदेशों की नामी पौधशालाओं से इन किस्मों को मंगवाना शुरू किया। इस साल तक सभी स्थानों से सेब की विदेशी किस्मों ने सैंपल दे दिया है। इस संक्षिप्त विवरण के बाद अब पढि़ए 4500 फीट से 8000 फीट की ऊंचाई पर अध्ययन से सामने आई


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