हिमाचल प्रदेश के बागवान चैरी उत्पादन की तरफ झुकाव पैदा कर रहे हैं। पिछले कुछ समय से प्रदेश में चैरी पैदा करने को लेकर बागवानों में उत्साह दिखाई दे रहा है। जिन इलाकों में किन्हीं कारणों से सेब उत्पादन प्रभावित हुआ है, वहां चैरी सफल हो रही है। यहां चैरी की किस्मों पर केंद्रित कुछ जानकारी प्रस्तुत है…
चैरी दिखने में खूबसूरत फल है और स्वाद में रसीला। इसकी मुख्य रूप से दो किस्में हार्ट ग्रुप व राउंड शेप हैं। हार्ट ग्रुप में वह किस्में आती हैं, जिनके फल मुलायम रसदार गुद्दे वाले व हृदयकार होते हैं। इसमें गहरे तथा हल्के रंग वाली दोनों जातियां शामिल हैं। इनका रस लाल तथा लगभग सफेद रंग का होता है। बिगारियो ग्रुप में वह जातियां आती हैं, जिनके फल तुलना में सख्त, क्रिस्पी तथा गोल आकार के होते हैं। कुछ किस्मों के फल हृदयकार के भी होते हैं।
ब्लैक टारटेरियन : इसके फल मध्यम आकार, काले बैंगनी रंग, रसदार तथा मुलायम होते हैं। बिंग तथा लैंबर्ट किस्मों के लिये यह मुख्य परागण किस्म है।
बिंग: इस किस्म की चैरी के फल लाल रंग के होते हैं। पकने पर यह काले हो जाते हैं। इन्हें देर तक रखा जा सकता है। यह किस्म डिब्बा बंदी के लिये भी सही है। बारिश में इसके फल फट जाते हैं।
नैपोलियन : इस किस्म की चैरी में फल सख्त, हल्के रंग के तथा सफे द गूदे वाले होते हैं। यह किस्म भी डिब्बा बंदी के लिए अच्छी है।
स्टू : नैपोलियन किस्म की तुलना में इस चैरी के फल छोटे होते हैं, लेकिन ये स्वाद में मीठे होते हैं।
ब्लैक रिपब्लिकन : फल गहरे लाल रंग के होते हैं। इन्हें देर तक रखा जा सकता है। यह परागण के लिये उपयुक्त किस्म है।
वैन : बिंग, लैंबर्ट व नैपोलियन के परागण के लिए यह उपयुक्त किस्म है। फल मध्यम आकार तथा काले रंग के होते हैं, इनमें बिंग किस्म की तुलना में फटने की कम आशंका होती है। इसके डंठल छोटे होते हैं तथा यह डिब्बाबंदी के लिए उपयुक्त किस्म है।
सैम : इसके फल लाल रंग के तथा लैंबर्ट किस्म के आकार के होते है। बिंग, लैंबर्ट व नैपोलियन किस्मों के परागण के लिए यह अच्छी किस्म है। यह डिब्बा बंदी के लिए भी ठीक है।
लैंबर्ट : इसके फल बैंगनी लाल तथा नुकीले आकार के होते हैं जो वर्षा गतु आने पर फट जाते हैं। जहां पर बसंत के मौसम में अधिक पाला पड़ता हा, वहां के लिए यह उपयुक्त किस्म है।
एंपरर फ्रांसिस : इसमें फल बहुत बड़े आकार के गहरे लाल रंग के होते है। इन्हें शीत गृह में काफी समय तक रखा जा सकता है। यह देर से पकने वाली किस्म है जो मई के तीसरे हफ्ते में तैयार होती है। डिब्बा बंदी के लिए भी अच्छी किस्म है।
अर्ली रिवर्स : इसमें फलों का आकार बड़ा व त्वचा का रंग काला होता है। फल बहुत रसदार, स्वाद से भरपूर अच्छे होते हैं। इसमें फल मई के पहले हफ्ते में पकते हैं।
ब्लैक हार्ट : फल औसत आकार वाले होते हैं, त्वचा पतली तथा काले रंग की होती है। खाने में स्वादिष्ट तथा खुशबूदार, गुद्दा मुलायम व रसदार होता है। फल मई के पहले सप्ताह में पकते हैं।
इसके अलावा स्टैला तथा लैपिनस ऐसी किस्में हैं, जो स्वयं फलित हैं। स्टैला के फल सख्त काले रंग के तथा बड़े आकार के होते हैं।
प्रदेश में अधिकतर पौधे रेड हार्ट तथा ब्लैक हार्ट किस्मों के लगे हुए हैं, लेकिन अभी तक इसकी बागवानी व्यवसायिक स्तर पर नहीं हो रही है। ब्लैक हार्ट एक कमर्शियल किस्म है। इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है। रेड हार्ट, जिसके फल लाल रंग के तथा कुछ खट्टे होते हैं, की अच्छी कीमत नहीं मिलती, लेकिन फिर भी परागण के लिए इन्हें लगाया जाता है।
मर्चेंट किस्म: इसका फल मध्यम आकार का होता है। इसका छाल काली होती है। इस किस्म में हैवी क्रापिंग होती है। इसकी खासियत यह है कि इसका परागण किसी भी प्रजाति से आसानी से हो जाता है। यह किस्म भी अन्य किस्मों को पोलीनाइज कर सकती है। इसका पौधा मध्यम ऊंचाई वाला और अधिक फैलावदार होता है। इस किस्म को कैंकर आसानी से नहीं घेर पाता।
ड्यूरोनेरो-1: यह चैरी की स्वादिष्ट किस्म है। इस किस्म में काफी उत्पादन होता है। इसके फल आकार में अन्य किस्मों से बड़े होते हैं और इनकी लंबाई-चौड़ाई लगभग एक समान होती है। यह किस्म करीब 55 से 65 दिनों के भीतर पक कर तैयार हो जाती है। हिमाचल में इस किस्म का व्यवसायिक तौर पर काफी उत्पादन हो रहा है।
ड्यूरोनेरो-2: इस किस्म के फल भी पहली किस्म की तरह ही बड़े अकार के होते हैं। यह किस्म 75 दिन के आसपास तैयार होती है, क्योकि इसमें फूल अन्य किस्मों के मुकाबले कुछ देरी से आते हैं। इस किस्म की चैरी का गुद्दा सख्त लेकिन रसीला होता है।
ड्यूरोनेरो-3: इस किस्म की शैल्फ लाइफ काफी मजबूत होती है, इसलिए इसे दूर की मंडियों में भी आसानी से भेजा जा सकता है। ड्यूरोनेरो सीरीज की अन्य किस्मों की तरह इसका पौधा भी बड़ा और फैलावदार बनता है। यह किस्म भी 75 दिनों के करीब तैयार हो जाती है। इसके फलों की छाल गहरे लाल रंग की होती है।
रैगिना: यह किस्म 75-80 दिनों में तैयार होती है। इसकी उत्पादन क्षमता काफी अधिक है। इसका फल गहरे लाल रंग का होता है। इसके फल भी देरी से पकते हैं, लेकिन इसमें मिठास और रस अधिक होता है। इसका पौधा शंकु के आकार में बढ़ता है, जिसकी टहनियां झुकी हुई होती हैं।
वैन: इस किस्म के पौधे मध्यम से बड़े आकार के होते हैं, जिनमें हैवी क्रॉप लगती है। हालांकि इसके फलों का आकार अपेक्षाकृत कम होता है। इसके फल की डंडी छोटी रहती है, जिससे इसे तोडऩे में मुश्किल आती है। यह किस्म 60 से 65 दिनों के भीतर पक कर तैयार हो जाती है।
स्टैला: स्टैला किस्म में फल उत्पादन के लिए किसी अन्य परागण प्रजाति की जरूरत नहीं होती है। यह संकर किस्म है और इसके फल बड़े और गहरे रंग के होते हैं। यह किस्म भी 60 से 65 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। इसका पौधा भी सीधा ऊपर की ओर बढ़ता है।
बिंग: इस समय सारी दुनिया में बिंग किस्म की चैरी का सबसे ज्यादा उत्पादन किया जा रहा है। इसके पौधे की बढ़ोतरी काफी तेजी से होती है, जो अधिक पैदावार देती है। इसके फलों की छाल गहरे लाल रंग की और फल बड़ा होता है। यह किस्म लगभग 60 से 75 दिनों में तैयार हो जाती है।
सनबस्र्ट : यह किस्म भी बिना किसी परागण के फल पैदा करने में सक्षम है। इसे भी वैन और स्टैला से क्रास कर तैयार किया गया है। इसके पौधे मध्यम आकार के फैलावदार होते हैं। इसे 1983 में व्यावसायिक उत्पादन में लाया गया था। यह किस्म करीब 75दनों से पहले तैयार हो जाती है। इसका गुद्दा भी थोड़ा ठोस और स्वाद वाला होता है।
अर्ली रिवर्ज: इसके किस्म के पौधे का आकार बड़ा और फैलावदार होता है। फल गोलाकार और लंबे होते हैं। देखने में यह गहरे लाल और कुछ काले होते हैं। यह एक पुरानी अंग्रेजी किस्म है, जिसका गुद््दा नर्म व स्वाद से भरपूर होता है। यह करीब 60 दिनों में तैयार हो जाती है।
बरलैट: इसके पौधे के आकार बड़ा और फैलावदार होता है। इसके फल बड़े और दिल के आकार वाले होते हैं। इसकी छाल लाल और चमकदार होती है। लेकिन इसमें फल फटने की समस्या आ सकती है। यह प्रजाति फ्रांस में विकसित है, जो जल्द और ज्यादा पैदावार के लिए लगाई जाती है। यह एक अर्ली वैरायटी है और करीब 40 दिनों में तैयार हो जाती है।
लैंबर्ट: इस किस्म के फल मध्यम से कुछ बड़े और दिल के आकार के होते हैं। इस किस्म में भी फल फटने की समस्या आ सकती है। हालांकि इसका गुद्दा कठोर होता है। इसके पौधे काफी बड़े और फैलावदार होते हैं। इसमें मध्य समय में फूल आते हैं।
नाशपाती
हिमाचल प्रदेश में सेब के बाद पैदावार के लिहाज से नाशपाती का नंबर है। कुल्लू जिला में इसका उत्पादन अधिक होता है। जैसे-जैसे मार्केट में नाशपाती की डिमांड बढ़ी है, बागवान इसकी पैदावार की तरफ झुके हैं। प्रदेश में नाशपाती की उन्हीं किस्मों को उगाना फायदेमंद है, जिसकी शैल्फ लाइफ अच्छी हो। चूंकि नाशपाती से डिब्बाबंद पदार्थ भी तैयार किए जा सकते हैं, इसलिए इसकी पैदावार में बागवानों को भी लाभ है। जागरुकता बढऩे के साथ ही बागवान सेब के बागीचों में खाली जगह पर नाशपाती की सघन बागवानी कर रहे हैं। बहुत से प्रगतिशील बागवानों ने रूट स्टॉक के जरिए नाशपाती की विदेशी किस्मों को उगाया है। एक अन्य कारण है, जिसके चलते बागवान नाशापाती उगा रहे हैं। अब प्रदेश में ही सीए स्टोर की सुविधा उपलब्ध है। इस तरह ऑफ सीजन में भी बागवान इसकी पैदावार कर लाभ कमा रहे हैं। ऊंचाई वाले इलाकों में नाशापाती की अगेती किस्मों में अर्ली चाइना, लेक्सट्नस सुपर्ब आदि वैरायटियां उगाई जाती हैं। मध्य मौसमी किस्मों में वार्टलेट, रेड वार्टलेट, मैक्स रेड वार्टलेट, क्लैपस फेवरेट आदि शामिल हैं।
पछेती किस्मों में डायने ड्यूकोमिस व कश्मीरी नाशपाती आती है। इसी तरह मध्यवर्ती निचले इलाकों में पत्थर नाख, कीफर (परागणकर्ता) व चाइना नाशपाती है। अर्ली चाइना नाशपाती सबसे पहले पकने वाली किस्म है। यह जून महीने में पककर तैयार हो जाती है। लेक्सट्नस सुपर्ब नाशपाती अधिक पैदावार देने वाली किस्म है। वार्टलेट किस्म सबसे लोकप्रिय है। रेड वार्टलेट व्यवसायिक किस्म है। फ्लैमिश ब्यूटी किस्म सितंबर में पक कर तैयार होती है। स्टार क्रिमसन मध्यम पर्वतीय इलाकों के लिए अनुकूल है। काशमीरी नाशपाती नियमित रूप से अधिक फल देने वाली किस्म है। पैखम थ्रंपस की शैल लाइफ सबसे अधिक है और इसकी पैदावार कलम लगने के दूसरे साल ही आनी शुरू हो जाती है। इसके साथ ही कांफ्रेंस कानकार्ड और इटली की किस्म अपाटे फैटल की शैल्फ लाइफ अच्छी है और यह लेट वैरायटी है। इटली की किस्म कारमेन वैरायटी अर्ली वैरायटी में शामिल है, जो वार्टलेट से भी पहले मार्केट में आती है।
नाशपाती के रूट स्टॉक कैंथ व क्वींस पर लगाए जाते हैं। कैंथ पर पौधे की ग्रोथ अच्छी होती है और फल लेट आते हैं। क्वींस पर तैयार किया गया पौधा आकार में छोटा होता है और जल्दी पैदावार देता है। इस समय विश्व में नाशपाती की पैदावार रूट स्टॉक पर हो रही है। सिडलिंग पर इसे तैयार करना महंगा है। जिस भूमि की उपजाऊ शक्ति अच्छी हो, उसमें लगाए पौधों की बढ़ोतरी अधिक होती है। ऐसी जगह नाइट्रोजन युक्त खाद का प्रयोग कम करना चाहिए। नहीं तो पेड़ों में फूल की कलियां नहीं बनेगी। ऐसे पेड़ों में पोटाश व फास्फेट खाद की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। ये दोनों खादें फल की कलियों को बढ़ाने में सहायक होती है। नाशपाती में सेब की तरह ही खादें डाली जाती हैं।
परागण की समस्या और समाधान: नाशपाती की अधिकतर किस्में यदि अकेले लगाई जाएं तो फल कम लगते हैं। ऐसे में दोनाशपाती के रूट स्टॉक कैंथ व क्वींस पर लगाए जाते हैं। कैंथ पर पौधे की ग्रोथ अच्छी होती है और फल लेट आते हैं। क्वींस पर तैयार किया गया पौधा आकार में छोटा होता है और जल्दी पैदावार देता है। इस समय विश्व में नाशपाती की पैदावार रूट स्टॉक पर हो रही है। सिडलिंग पर इसे तैयार करना महंगा है। जिस भूमि की उपजाऊ शक्ति अच्छी हो, उसमें लगाए पौधों की बढ़ोतरी अधिक होती है। ऐसी जगह नाइट्रोजन युक्त खाद का प्रयोग कम करना चाहिए। नहीं तो पेड़ों में फूल की कलियां नहीं बनेगी। ऐसे पेड़ों में पोटाश व फास्फेट खाद की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। ये दोनों खादें फल की कलियों को बढ़ाने में सहायक होती है। नाशपाती में सेब की तरह ही खादें डाली जाती हैं।
यदि नया बगीचा लगाना हो तो परागणकर्ता किस्में लगाना जरूरी हैं। नाशपाती की मुख्य किस्में वार्टलेट कांफ्रेंस पैखम, बूरीबॉक्स, स्टार क्रिमसन आदि हैं। वार्टलेट के साथ बूरीबाक्स, विंटरनेलिस, पैखम व कांफ्र्रेंस को पोलीनाइजर के रूप में लगाना चाहिए। इसी तरह कांफ्रेंस के साथ वार्टलेट व बूरीबॉक्स, पैखम के साथ वार्टलेट, बूरीबाक्स फिर बूरीबाक्स के साथ वार्टलेट, विंटरनेलिस व कांफ्रेंस और स्टार क्रिमसन के साथ बूरीबाक्स, कांफ्रेंस, वार्टलेट व विंटरनेलिस को पोलीनाइजर के तौर पर लगाना चाहिए।लिए मिट्टी में पोषक तत्व फिर से लौट आते हैं।
चैरी दिखने में खूबसूरत फल है और स्वाद में रसीला। इसकी मुख्य रूप से दो किस्में हार्ट ग्रुप व राउंड शेप हैं। हार्ट ग्रुप में वह किस्में आती हैं, जिनके फल मुलायम रसदार गुद्दे वाले व हृदयकार होते हैं। इसमें गहरे तथा हल्के रंग वाली दोनों जातियां शामिल हैं। इनका रस लाल तथा लगभग सफेद रंग का होता है। बिगारियो ग्रुप में वह जातियां आती हैं, जिनके फल तुलना में सख्त, क्रिस्पी तथा गोल आकार के होते हैं। कुछ किस्मों के फल हृदयकार के भी होते हैं।
ब्लैक टारटेरियन : इसके फल मध्यम आकार, काले बैंगनी रंग, रसदार तथा मुलायम होते हैं। बिंग तथा लैंबर्ट किस्मों के लिये यह मुख्य परागण किस्म है।
बिंग: इस किस्म की चैरी के फल लाल रंग के होते हैं। पकने पर यह काले हो जाते हैं। इन्हें देर तक रखा जा सकता है। यह किस्म डिब्बा बंदी के लिये भी सही है। बारिश में इसके फल फट जाते हैं।
नैपोलियन : इस किस्म की चैरी में फल सख्त, हल्के रंग के तथा सफे द गूदे वाले होते हैं। यह किस्म भी डिब्बा बंदी के लिए अच्छी है।
स्टू : नैपोलियन किस्म की तुलना में इस चैरी के फल छोटे होते हैं, लेकिन ये स्वाद में मीठे होते हैं।
ब्लैक रिपब्लिकन : फल गहरे लाल रंग के होते हैं। इन्हें देर तक रखा जा सकता है। यह परागण के लिये उपयुक्त किस्म है।
वैन : बिंग, लैंबर्ट व नैपोलियन के परागण के लिए यह उपयुक्त किस्म है। फल मध्यम आकार तथा काले रंग के होते हैं, इनमें बिंग किस्म की तुलना में फटने की कम आशंका होती है। इसके डंठल छोटे होते हैं तथा यह डिब्बाबंदी के लिए उपयुक्त किस्म है।
सैम : इसके फल लाल रंग के तथा लैंबर्ट किस्म के आकार के होते है। बिंग, लैंबर्ट व नैपोलियन किस्मों के परागण के लिए यह अच्छी किस्म है। यह डिब्बा बंदी के लिए भी ठीक है।
लैंबर्ट : इसके फल बैंगनी लाल तथा नुकीले आकार के होते हैं जो वर्षा गतु आने पर फट जाते हैं। जहां पर बसंत के मौसम में अधिक पाला पड़ता हा, वहां के लिए यह उपयुक्त किस्म है।
एंपरर फ्रांसिस : इसमें फल बहुत बड़े आकार के गहरे लाल रंग के होते है। इन्हें शीत गृह में काफी समय तक रखा जा सकता है। यह देर से पकने वाली किस्म है जो मई के तीसरे हफ्ते में तैयार होती है। डिब्बा बंदी के लिए भी अच्छी किस्म है।
अर्ली रिवर्स : इसमें फलों का आकार बड़ा व त्वचा का रंग काला होता है। फल बहुत रसदार, स्वाद से भरपूर अच्छे होते हैं। इसमें फल मई के पहले हफ्ते में पकते हैं।
ब्लैक हार्ट : फल औसत आकार वाले होते हैं, त्वचा पतली तथा काले रंग की होती है। खाने में स्वादिष्ट तथा खुशबूदार, गुद्दा मुलायम व रसदार होता है। फल मई के पहले सप्ताह में पकते हैं।
इसके अलावा स्टैला तथा लैपिनस ऐसी किस्में हैं, जो स्वयं फलित हैं। स्टैला के फल सख्त काले रंग के तथा बड़े आकार के होते हैं।
प्रदेश में अधिकतर पौधे रेड हार्ट तथा ब्लैक हार्ट किस्मों के लगे हुए हैं, लेकिन अभी तक इसकी बागवानी व्यवसायिक स्तर पर नहीं हो रही है। ब्लैक हार्ट एक कमर्शियल किस्म है। इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है। रेड हार्ट, जिसके फल लाल रंग के तथा कुछ खट्टे होते हैं, की अच्छी कीमत नहीं मिलती, लेकिन फिर भी परागण के लिए इन्हें लगाया जाता है।
मर्चेंट किस्म: इसका फल मध्यम आकार का होता है। इसका छाल काली होती है। इस किस्म में हैवी क्रापिंग होती है। इसकी खासियत यह है कि इसका परागण किसी भी प्रजाति से आसानी से हो जाता है। यह किस्म भी अन्य किस्मों को पोलीनाइज कर सकती है। इसका पौधा मध्यम ऊंचाई वाला और अधिक फैलावदार होता है। इस किस्म को कैंकर आसानी से नहीं घेर पाता।
ड्यूरोनेरो-1: यह चैरी की स्वादिष्ट किस्म है। इस किस्म में काफी उत्पादन होता है। इसके फल आकार में अन्य किस्मों से बड़े होते हैं और इनकी लंबाई-चौड़ाई लगभग एक समान होती है। यह किस्म करीब 55 से 65 दिनों के भीतर पक कर तैयार हो जाती है। हिमाचल में इस किस्म का व्यवसायिक तौर पर काफी उत्पादन हो रहा है।
ड्यूरोनेरो-2: इस किस्म के फल भी पहली किस्म की तरह ही बड़े अकार के होते हैं। यह किस्म 75 दिन के आसपास तैयार होती है, क्योकि इसमें फूल अन्य किस्मों के मुकाबले कुछ देरी से आते हैं। इस किस्म की चैरी का गुद्दा सख्त लेकिन रसीला होता है।
ड्यूरोनेरो-3: इस किस्म की शैल्फ लाइफ काफी मजबूत होती है, इसलिए इसे दूर की मंडियों में भी आसानी से भेजा जा सकता है। ड्यूरोनेरो सीरीज की अन्य किस्मों की तरह इसका पौधा भी बड़ा और फैलावदार बनता है। यह किस्म भी 75 दिनों के करीब तैयार हो जाती है। इसके फलों की छाल गहरे लाल रंग की होती है।
रैगिना: यह किस्म 75-80 दिनों में तैयार होती है। इसकी उत्पादन क्षमता काफी अधिक है। इसका फल गहरे लाल रंग का होता है। इसके फल भी देरी से पकते हैं, लेकिन इसमें मिठास और रस अधिक होता है। इसका पौधा शंकु के आकार में बढ़ता है, जिसकी टहनियां झुकी हुई होती हैं।
वैन: इस किस्म के पौधे मध्यम से बड़े आकार के होते हैं, जिनमें हैवी क्रॉप लगती है। हालांकि इसके फलों का आकार अपेक्षाकृत कम होता है। इसके फल की डंडी छोटी रहती है, जिससे इसे तोडऩे में मुश्किल आती है। यह किस्म 60 से 65 दिनों के भीतर पक कर तैयार हो जाती है।
स्टैला: स्टैला किस्म में फल उत्पादन के लिए किसी अन्य परागण प्रजाति की जरूरत नहीं होती है। यह संकर किस्म है और इसके फल बड़े और गहरे रंग के होते हैं। यह किस्म भी 60 से 65 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। इसका पौधा भी सीधा ऊपर की ओर बढ़ता है।
बिंग: इस समय सारी दुनिया में बिंग किस्म की चैरी का सबसे ज्यादा उत्पादन किया जा रहा है। इसके पौधे की बढ़ोतरी काफी तेजी से होती है, जो अधिक पैदावार देती है। इसके फलों की छाल गहरे लाल रंग की और फल बड़ा होता है। यह किस्म लगभग 60 से 75 दिनों में तैयार हो जाती है।
सनबस्र्ट : यह किस्म भी बिना किसी परागण के फल पैदा करने में सक्षम है। इसे भी वैन और स्टैला से क्रास कर तैयार किया गया है। इसके पौधे मध्यम आकार के फैलावदार होते हैं। इसे 1983 में व्यावसायिक उत्पादन में लाया गया था। यह किस्म करीब 75दनों से पहले तैयार हो जाती है। इसका गुद्दा भी थोड़ा ठोस और स्वाद वाला होता है।
अर्ली रिवर्ज: इसके किस्म के पौधे का आकार बड़ा और फैलावदार होता है। फल गोलाकार और लंबे होते हैं। देखने में यह गहरे लाल और कुछ काले होते हैं। यह एक पुरानी अंग्रेजी किस्म है, जिसका गुद््दा नर्म व स्वाद से भरपूर होता है। यह करीब 60 दिनों में तैयार हो जाती है।
बरलैट: इसके पौधे के आकार बड़ा और फैलावदार होता है। इसके फल बड़े और दिल के आकार वाले होते हैं। इसकी छाल लाल और चमकदार होती है। लेकिन इसमें फल फटने की समस्या आ सकती है। यह प्रजाति फ्रांस में विकसित है, जो जल्द और ज्यादा पैदावार के लिए लगाई जाती है। यह एक अर्ली वैरायटी है और करीब 40 दिनों में तैयार हो जाती है।
लैंबर्ट: इस किस्म के फल मध्यम से कुछ बड़े और दिल के आकार के होते हैं। इस किस्म में भी फल फटने की समस्या आ सकती है। हालांकि इसका गुद्दा कठोर होता है। इसके पौधे काफी बड़े और फैलावदार होते हैं। इसमें मध्य समय में फूल आते हैं।
नाशपाती
हिमाचल प्रदेश में सेब के बाद पैदावार के लिहाज से नाशपाती का नंबर है। कुल्लू जिला में इसका उत्पादन अधिक होता है। जैसे-जैसे मार्केट में नाशपाती की डिमांड बढ़ी है, बागवान इसकी पैदावार की तरफ झुके हैं। प्रदेश में नाशपाती की उन्हीं किस्मों को उगाना फायदेमंद है, जिसकी शैल्फ लाइफ अच्छी हो। चूंकि नाशपाती से डिब्बाबंद पदार्थ भी तैयार किए जा सकते हैं, इसलिए इसकी पैदावार में बागवानों को भी लाभ है। जागरुकता बढऩे के साथ ही बागवान सेब के बागीचों में खाली जगह पर नाशपाती की सघन बागवानी कर रहे हैं। बहुत से प्रगतिशील बागवानों ने रूट स्टॉक के जरिए नाशपाती की विदेशी किस्मों को उगाया है। एक अन्य कारण है, जिसके चलते बागवान नाशापाती उगा रहे हैं। अब प्रदेश में ही सीए स्टोर की सुविधा उपलब्ध है। इस तरह ऑफ सीजन में भी बागवान इसकी पैदावार कर लाभ कमा रहे हैं। ऊंचाई वाले इलाकों में नाशापाती की अगेती किस्मों में अर्ली चाइना, लेक्सट्नस सुपर्ब आदि वैरायटियां उगाई जाती हैं। मध्य मौसमी किस्मों में वार्टलेट, रेड वार्टलेट, मैक्स रेड वार्टलेट, क्लैपस फेवरेट आदि शामिल हैं।
पछेती किस्मों में डायने ड्यूकोमिस व कश्मीरी नाशपाती आती है। इसी तरह मध्यवर्ती निचले इलाकों में पत्थर नाख, कीफर (परागणकर्ता) व चाइना नाशपाती है। अर्ली चाइना नाशपाती सबसे पहले पकने वाली किस्म है। यह जून महीने में पककर तैयार हो जाती है। लेक्सट्नस सुपर्ब नाशपाती अधिक पैदावार देने वाली किस्म है। वार्टलेट किस्म सबसे लोकप्रिय है। रेड वार्टलेट व्यवसायिक किस्म है। फ्लैमिश ब्यूटी किस्म सितंबर में पक कर तैयार होती है। स्टार क्रिमसन मध्यम पर्वतीय इलाकों के लिए अनुकूल है। काशमीरी नाशपाती नियमित रूप से अधिक फल देने वाली किस्म है। पैखम थ्रंपस की शैल लाइफ सबसे अधिक है और इसकी पैदावार कलम लगने के दूसरे साल ही आनी शुरू हो जाती है। इसके साथ ही कांफ्रेंस कानकार्ड और इटली की किस्म अपाटे फैटल की शैल्फ लाइफ अच्छी है और यह लेट वैरायटी है। इटली की किस्म कारमेन वैरायटी अर्ली वैरायटी में शामिल है, जो वार्टलेट से भी पहले मार्केट में आती है।
नाशपाती के रूट स्टॉक कैंथ व क्वींस पर लगाए जाते हैं। कैंथ पर पौधे की ग्रोथ अच्छी होती है और फल लेट आते हैं। क्वींस पर तैयार किया गया पौधा आकार में छोटा होता है और जल्दी पैदावार देता है। इस समय विश्व में नाशपाती की पैदावार रूट स्टॉक पर हो रही है। सिडलिंग पर इसे तैयार करना महंगा है। जिस भूमि की उपजाऊ शक्ति अच्छी हो, उसमें लगाए पौधों की बढ़ोतरी अधिक होती है। ऐसी जगह नाइट्रोजन युक्त खाद का प्रयोग कम करना चाहिए। नहीं तो पेड़ों में फूल की कलियां नहीं बनेगी। ऐसे पेड़ों में पोटाश व फास्फेट खाद की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। ये दोनों खादें फल की कलियों को बढ़ाने में सहायक होती है। नाशपाती में सेब की तरह ही खादें डाली जाती हैं।
परागण की समस्या और समाधान: नाशपाती की अधिकतर किस्में यदि अकेले लगाई जाएं तो फल कम लगते हैं। ऐसे में दोनाशपाती के रूट स्टॉक कैंथ व क्वींस पर लगाए जाते हैं। कैंथ पर पौधे की ग्रोथ अच्छी होती है और फल लेट आते हैं। क्वींस पर तैयार किया गया पौधा आकार में छोटा होता है और जल्दी पैदावार देता है। इस समय विश्व में नाशपाती की पैदावार रूट स्टॉक पर हो रही है। सिडलिंग पर इसे तैयार करना महंगा है। जिस भूमि की उपजाऊ शक्ति अच्छी हो, उसमें लगाए पौधों की बढ़ोतरी अधिक होती है। ऐसी जगह नाइट्रोजन युक्त खाद का प्रयोग कम करना चाहिए। नहीं तो पेड़ों में फूल की कलियां नहीं बनेगी। ऐसे पेड़ों में पोटाश व फास्फेट खाद की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। ये दोनों खादें फल की कलियों को बढ़ाने में सहायक होती है। नाशपाती में सेब की तरह ही खादें डाली जाती हैं।
यदि नया बगीचा लगाना हो तो परागणकर्ता किस्में लगाना जरूरी हैं। नाशपाती की मुख्य किस्में वार्टलेट कांफ्रेंस पैखम, बूरीबॉक्स, स्टार क्रिमसन आदि हैं। वार्टलेट के साथ बूरीबाक्स, विंटरनेलिस, पैखम व कांफ्र्रेंस को पोलीनाइजर के रूप में लगाना चाहिए। इसी तरह कांफ्रेंस के साथ वार्टलेट व बूरीबॉक्स, पैखम के साथ वार्टलेट, बूरीबाक्स फिर बूरीबाक्स के साथ वार्टलेट, विंटरनेलिस व कांफ्रेंस और स्टार क्रिमसन के साथ बूरीबाक्स, कांफ्रेंस, वार्टलेट व विंटरनेलिस को पोलीनाइजर के तौर पर लगाना चाहिए।लिए मिट्टी में पोषक तत्व फिर से लौट आते हैं।